शनिवार, 19 अगस्त 2017

॥ कहें दीन प्रवीन जो अर्थ करी बसुधा मह ताकर बुद्धि खरी॥
बिरहानल ज्वाला में बाला बेहाल सुनो कछु ताकर हाल कही,
लिखि सेस महेस हुतासन स्येन निसाचर पूजन ध्यान धरी
कछु और सुनी तो थप्यौ गरुड़ै भस्मासुर बारिद ब्याध हरी,
कहें दीन प्रवीन जो अर्थ करी बसुधा मह ताकर बुद्धि खरी
लोकभाषा के कवि दीन इस पद्य के माध्यम से नवविवाहिता प्रोषित्पतिका नायिका की विरहव्यथा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि
एक नववधू पति के विरह की अग्नि में व्याकुल हो अपनी विरहव्यथा के निवारण हेतु शेष-महेश-अग्नि-बाजपक्षी-राहु आदि का ध्यान करती है कि –
हे शेषनाग ! आप अपनी विष भरी फुफकार से मन्द मलयसमीर को उष्णतायुक्त कर दें।
हे महेश्वर ! आप पुनः अपना तीसरा नेत्र खोल कर मुझे पीडित करने वाले कामदेव को शान्त कर दें।
हे अग्निदेव ! आप अपनी तीव्र ज्वाला से इन मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों को झुलसा दें।
हे बाजपक्षी ! आप वसन्तसखा की प्रिया कोकिल को अपने पंजों में जकड़ लें।
हे राहु ! आप रात्रि को अपनी पूर्णचन्द्रिका से आलोकित कर विरहाकुल हृदय को संतप्त करने वाले
चन्द्रमा का ग्रहण करें।
आप लोगों के इस सहयोग से मेरा विरहव्यथा-संतप्त हृदय शान्त हो सकेगा।

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कछु और सुनी' अर्थात् जैसे ही बेचारी विरहिणी ने अपनी विरहव्यथा के निवारण हेतु शेष-महेश-अग्नि-बाजपक्षी-राहु आदि को आमन्त्रित किया कि तभी सन्देशवाहक ने सूचित किया कि उसका प्रियतम गया है। प्रियतम के आगमन की सूचना से वह नववधू सोच में पड़ गई कि अभी-अभी जिन्हें मैंने आमन्त्रित किया है, अब तो उनका कोई प्रयोजन ही नहीं है। अतः वे आवें इस प्रयोजन से पुनः वह नववधू गरुड़-भस्मासुर-वारिद-व्याध-श्रीहरि का ध्यान करती है कि –
गरुड़जी की उपस्थिति से शेषनागजी नहीं आयेंगे, जिससे अभी तक विरहव्यथा-संताप प्रदान करने वाला मन्द मलयसमीर  अब प्रियतम साहचर्य में सहायक होगा।
भस्मासुर की उपस्थिति से शिवजी नहीं आयेंगे, जिससे अभी तक कामपीडित करने वाला मनसिज  अब प्रियतम साहचर्य में परम आह्लाददायक होगा।
वारिद अर्थात् मेघवर्षण से अग्निदेव तिरोहित हो जायेंगे, जिससे जो मनोहारी प्राकृतिक दृश्य अभी तक विरहव्यथा-संताप प्रदान कर रहे थे; वे ही मनोहारी प्राकृतिक दृश्य अब प्रियतम साहचर्य में सहायक होंगे।
व्याध अपने तीक्ष्ण बाणों से बाज को मार कर कोकिल की रक्षा कर देगा, जिससे वसन्तसखा की प्रिया कोकिल अपने सुमधुर कूजन से कामानन्द में सहायिका होगी।

श्रीहरि अपने चक्र से राहु का नाश कर देंगे, जिससे चन्द्रमा उन्मुक्त गगन में विचरण करते हुये रात्रि को अपनी पूर्णचन्द्रिका से आलोकित कर प्रियतम साहचर्य में सहायक होंगे।